कोटा. शहर अगले कुछ दिनों में नए स्वरूप में सबके सामने होगा। नए रास्ते बन रहे हैं। अच्छी और चौड़ी सड़कों के साथ एकतरफा यातायात का सिस्टम भी रहेगा। ये नयापन कई चुनौतियां लेकर आ रहा है, जिसका असर नजर भी आने लगा है। नई सड़कों पर तेज गति से चलते वाहन टकराने लगे हैं। मौतें होने लगी है। ऐसे में अब शहरवासियों में नए रास्तों के अनुसार ट्रैफिक सेंस डवलप करने की जरुरत है।
शहर में अब तक लम्बे रास्ते नहीं थे। कहीं से भी घुसकर कहीं से भी निकला जा सकता था। लेकिन अब कुछ दूरी वाले निश्चित स्थान तक पहुंचकर ही मुड़ना होगा। वाहन चालक इस नई व्यवस्था से कन्नी काटते दिख रहे हैं, इससे दुर्घटनाओं की आशंका और बलवती हो गई है। वाहन चालकों को नए सिस्टम में ढालने के लिए यातायात पुलिस को आगे आना होगा, लेकिन उसकी रूचि भी यह जिम्मेदारी उठाने की नहीं लग रही। वर्तमान में यातायात पुलिस का पूरा ध्यान हेलमेट और सीट बेल्ट के चालान बनाने पर है।
एक तो शहर के आधे रास्ते खराब और उस पर पुलिस का ऐसे स्थानों पर चालान बनाने से शहरवासियों में आक्रोश भी है। ऐसे में पुलिस का कर्तव्य है कि लोगों को गाइड करे। चौराहों पर पुलिस की मौजूदगी ही जनता को यातायात के नियमों की पालना पर मजबूर कर देती है। यदि नए रास्तों पर जहां लोग रॉन्ग साइड आ रहे हैं और जिन नए प्वाइंट्स पर दुर्घटनाएं हो रही हैं, वहां पुलिस को मौजूद रहकर लोगों में ट्रैफिक सेंस डवलप करने के लिए प्रयास करना होगा। ओवर स्पीडिंग और रॉंग साइड पर भी लगाम लगाने की कोशिश की जाए।
तेज गति से वाहन चलाने वालों पर कैमरे के जरिए रखें नजर
विवेक नंदवाना, एडवोकेट : शहर में सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए यातायात व्यवस्था में सुधार करना आवश्यक है। शहर के प्रमुख मार्गों पर वाहन की निर्धारित गति सीमा को दर्शाने के लिए नियमानुसार साइन बोर्ड लगाए जाने चाहिए। वर्तमान समय में तकनीक का पूर्ण दोहन होना चाहिए। इसके तहत प्रमुख मार्गों पर पर्याप्त संख्या में कैमरे लगाए जाने चाहिए और जो कोई भी वाहन चालक निर्धारित गति सीमा का उल्लंघन करे, उसके पास अविलंब ई-चालान प्रेषित करके कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
यातायात को नियंत्रित करने के लिए मोटर यान अधिनियम 1988 के अध्याय 8 की धारा 112 वाहन की गति सीमा के बारे में है, यदि कोई व्यक्ति निर्धारित गति सीमा का उल्लंघन करता है तो ऐसे वाहन चालक पर जुर्माने का प्रावधान है। हल्के मोटरयान के संबंध में न्यूनतम जुर्माना 1000 रुपए अधिकतम जुर्माना 2000 रुपए हो सकेगा। यदि वाहन वाणिज्य श्रेणी का है तो जुर्माना 2000 से कम नहीं होगा और 4000 तक किया जा सकेगा और यदि कोई वाहन चालक ऐसे अपराध को दोहराता है तो उसका लाइसेंस इंपाउंड करने की पुलिस अधिकारियों को शक्ति प्राप्त है। यदि कोई व्यक्ति खतरनाक तरीके से मोटरयान चलाता है तो ऐसे वाहन चालक को धारा 184 के तहत 1 वर्ष तक का कारावास या 5000 तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकेगा। किसी भी व्यक्ति के जीवन को खतरे में डालने का किसी भी वाहन चालक को कोई अधिकार नहीं है।
सड़क दुर्घटना को रोकने के लिए जितनी जिम्मेदारी प्रशासन की है, उतनी ही जिम्मेदारी प्रत्येक वाहन चालक की भी होती है। पर्याप्त संख्या में स्टाफ नहीं होने और आम आदमी के द्वारा शिकायत नहीं किए जाने के कारण लापरवाही से वाहन चलाने वाले व्यक्तियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। इसका नतीजा यह है कि देश में प्रत्येक वर्ष डेढ़ लाख से भी अधिक व्यक्ति सड़क दुर्घटना में अपनी जान गंवा देते हैं। सरकार सकारात्मक सोच के साथ केवल कानून बना सकती है लेकिन ऐसे कानून की पालना करवाने के लिए सक्षम एजेंसी के पास पर्याप्त मात्रा में स्टाफ होना आवश्यक है अन्यथा न्यूसेंस दिनोंदिन बढ़ेगा। छोटी-सी कहासुनी से जान जाने तक की स्थिति आ जाती है। यातायात में सुधार के लिए शहर के बीचों-बीच या प्रमुख मार्गों पर बाहरी वाहनों का आवागमन निषेध किया जाए और यथासंभव बाईपास रिंग रोड बनाकर यातायात का दबाव कम किया जाए।
वर्तमान समय में मोबाइल फोन का उपयोग दिनों दिन बढ़ता जा रहा है और हर दसवां वाहन चालक अपने हाथ मे मोबाइल पर नंबर डायल करते या बात करते हुए नजर आ जाता है जो अपने आप में अपराध है। इस प्रवृत्ति पर अंकुश जरूरी है। शराब का सेवन करके वाहन चलाना दंडनीय अपराध है, लेकिन अनेक कारणों से ऐसे वाहन चालकों के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाही नहीं होने से वे किसी की परवाह नहीं करते। वाहन का चलाने का लाइसेंस जारी किए जाने की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष की जानी चाहिए क्योंकि 10वीं क्लास से ही बच्चे वाहन चलाकर स्कूल-कोचिंग आदि जाने लगे हैं। विद्यालय स्तर से ही नई पीढ़ी को यातायात नियमों की जानकारी व्यवहारिक तौर पर दी जानी चाहिए। इससे नियमों के पालन के प्रति जागरुकता आएगी।
एक रास्ते को सीधा करने के चक्कर में बाकी सब घुमा दिए, इसलिए बिगड़ रहा यातायात
सुरेन्द्र गोयल विचित्र: शहर में स्टेशन से गोबरिया बावड़ी तक ट्रैफिक सिग्नल मुक्त करने के नाम पर सड़कों और चौराहों का जो पुननिर्माण किया है वो सरकार और नगर विकास न्यास के अधिकारियों को भले ही जनता के हित में लग रहा हो, लेकिन यह वाहन चालकों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। दस पंद्रह किलोमीटर लंबी इस सड़क के आस-पास जितने भी रास्ते हैं, उन सभी से आने जाने वाले वाहनचालकों के लिए यह योजना जी का जंजाल बन गई है। कोई भी व्यक्ति अपने गंतव्य स्थान पर सीधे रास्ते नहीं पहुंच पाता।
उसे अपने घर या कार्यस्थल पर शहर में घूम फिरकर जाना होगा, इसीलिए यातायात व्यवस्था अनियंत्रित हो गई है। उदाहरण के तौर पर देख लीजिए रामपुरा बाजार से विज्ञान नगर जाने वाले चालक को सब्जी मंडी में बने फ्लाईओवर पर चढ़ने के बाद बल्लभनगर चौराहे पर उतरकर शॉपिंग सेंटर के रास्ते छावनी फ्लाईओवर के नीचे से एयरोड्रम होते हुए जाना होगा। इस पूरे रास्ते पर इस तरह के ट्रैफिक डायवर्जन से और दोनों छोर पर यातायात व्यवस्था बेतरतीब हो गई है। इसी तरह आप और कहीं के भी रास्ते देख लीजिए। नगरीय विकास मंत्री मंत्री शांति धारीवाल की शहर के विकास की सोच बहुत अच्छी है परन्तु विभागों की कार्य योजना सही नहीं है।
यदि सभी पहलुओं पर विचार और आमजन से रायशुमारी करने के बाद कार्य किए जाते तो जनता को ऐसी परेशानी होने की बजाय सुविधाएं उपलब्ध होती। सबसे बड़े अफसोस की बात है कि पिछले दो साल में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए शहर में चल रहे विकास कार्यों की किसी भी अन्य जनप्रतिनिधि ने सुध नहीं ली। किसी जनप्रतिनिधि ने न्यास से एक बार भी सवाल नहीं किया, ना योजना में सुधार करने के लिए सुझाव दिया, ना कोई विरोध किया, ऐसे में अब अगर इसे वे गलत बताएं तो वो बेमानी साबित होगी क्योंकि जनप्रतिनिधि होने के नाते संबंधित विभागों में इनका हस्तक्षेप था, जो समय पर इन्होंने किया नहीं। शहर में याताायात को सुधारने के लिए वाहनों की स्पीड के साथ न्यास की अवांछित विकास योजनाओं पर भी कंट्रोल करना जरूरी है।