चांद की सतह पर मिली लैंडर विक्रम की लोकेशन,

बेंगलुरु
चांद की सतह पर लैंडर विक्रम की सटीक लोकेशन का पता लगा लिया गया है। ऑर्बिटर ने विक्रम लैंडर की एक थर्मल इमेज भी क्लिक की है। यह बात खुद इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कही है। इसराे प्रमुख ने कहा कि हालांकि लैंडर विक्रम से अभी तक संपर्क नहीं हो पाया है। ‘टीम लैंडर विक्रम से कम्युनिकेशन स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रही है। जल्द ही संपर्क स्थापित हो जाएगा।’ इसरो प्रमुख ने यह भी कहा कि इमेज से यह साफ नहीं हो सका है कि विक्रम चांद की सतह पर किस हालत में है। इसरो की FAC टीम यह पता लगाने में जुटी है कि आखिर किन वजहों से लैंडर का संपर्क इसरो कमांड से टूट गया था।
साढ़े 7 साल तक काम करेगा ऑर्बिटर
इसरो चीफ के. सिवन ने भी टीओआई से बातचीत में कहा था कि लैंडर विक्रम के मिलने की अब भी संभावना है। ‘ऑर्बिटर की उम्र साढ़े 7 सालों से ज्यादा है, न कि 1 साल, जैसा कि पहले बताया गया था। इसकी वजह है कि उसके पास बहुत ज्यादा ईंधन बचा हुआ है। ऑर्बिटर पर लगे उपकरणों के जरिए लैंडर विक्रम के मिलने की संभावना है।’
शनिवार को लगा था झटका
भारत के चंद्रयान-2 मिशन को शनिवार तड़के उस समय झटका लगा, जब चंद्रमा के सतह से महज 2 किलोमीटर पहले लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया। ISRO ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि विक्रम लैंडर उतर रहा था और लक्ष्य से 2.1 किलोमीटर पहले तक उसका काम सामान्य था। उसके बाद लैंडर का संपर्क जमीन पर स्थित केंद्र से टूट गया।
इसरो ने कहा था कि 3 दिन में चलेगा पता
इसरो के वैज्ञानिकों ने इससे पहले कहा था कि अगले 3 दिनों में विक्रम कहां और कैसे है, इसका पता चल सकता है। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत करते हुए सीनियर साइंटिस्ट ने बताया था, ‘3 दिनों में लैंडर विक्रम के मिलने की संभावना है। इसकी वजह यह है कि लैंडर से जिस जगह पर संपर्क टूटा था, उसी जगह पर ऑर्बिटर को पहुंचने में 3 दिन लगेंगे। हमें लैंडिंग साइट की जानकारी है। आखिरी क्षणों में विक्रम अपने रास्ते से भटक गया था, इसलिए हमें ऑर्बिटर के 3 उपकरणों SAR (सिंथेटिक अपर्चर रेडार), IR स्पेक्ट्रोमीटर और कैमरे की मदद से 10 x 10 किलोमीटर के इलाके को छानना होगा। विक्रम का पता लगाने के लिए हमें उस इलाके की हाई रेजॉलूशन तस्वीरें लेनी होंगी।’

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